IAS- ONESTOP FORUM
******************WE WILL BRING A PARADIGM CHANGE*********************
मैंने कइयों को सपने संजोते देखा है, अश्कों से पसीने से उन्हें सींचते भी देखा है. लेकिन बहुतों के सपनो को टूटते हुए, साधन हीनता के कारण घुटते मरते भी देखा है.
यह उन व्यक्तियों का दुर्भाग्य नहीं, हमारे समाज का नाकारापन ही है, कि साधन, सम्पन्नता , पैसे और बहुत सारी गैर मानवीय बातों का महत्त्व, उन मानव संवेदनाओं, स्वप्नों, क्षमताओं पर भारी पड़ता है. हमारे सिस्टम और समाज ने कई आइंस्टीन न्यूटन सरीखे या उससे बेहतर- संभावनाओं से भरी वैज्ञानिकों, विचारकों दार्शनिकों की भ्रूण हत्या की है. उन्हें उनके गंतव्य पर आने के पहले ही उन्हें बेदखल किया है. अपराधी है हमारा समाज। हत्यारा है हमारा समाज.....
क्यों हर कोई आई आई टी , आई आई एम, आई ए एस की तयारी तक नहीं कर सक़ता?
क्योकि हर किसी के माँ बाप, उन बच्चों के जैसे बड़ी बड़ी कोचिंग्स की फीस नहीं दे सकते। हर कोई दिल्ली की मुख़र्जी नगर, राजेंद्र नगर आदि और कानपूर, कोटा, इलाहबाद आदि की कोचिंग मंडियों में खरीददारी नहीं कर सकता। कोई पैसों से मारा जाता है और कोई भाषाओँ में विभेद के कारन उत्पन्न जटिलताओं और हीनताओं का शिकार बनता है, तो कोई शारीरिक मानसिक बाधाओं से जूझते हुए जीवन की सम्भवनाओं को क्षीण होता हुआ पाता है। विरले ही हैं जिन्होंने जिजीविषा के साथ परिस्थितियो पर विजय पाई होगी।
मैं -इन सब दुर्भाग्य पूर्ण स्थितियों का साक्षी रहा हूँ. मैंने अनेकों के सपनो को दफ़न होते देखा है. यद्यपि मैं आई ए एस जैसी अकड़ और अहंकार से भरी सेवाओं से घृणा करता हूँ तथापि यह मानते हुए कि यह देश सेवा का एक माध्यम हो सकती है, ज़रुरतमंदों को क्लास ए , बी, या सी , रक्षा सेवाओं, इंजीनियरिंग, मेडिकल तक पहुचाने हेतु तत्पर हूँ.
आज राष्ट्र को एक चाणक्य नहीं एक साथ कई चाणक्यों की आवश्यकता है. जो अनेकों अंजानी अनदेखी प्रतिभाओं को शून्य से शिखर पर प्रतिष्ठित करे। हमारा संकल्प होना चाहिए कि कम से कम 20 धनहीन, अभावग्रस्त लोगों को किसी न किसी रूप में मदद करके शून्य से राष्ट्र की प्रतिभाओं के रूप में विकसित करें. कम से कम मैं तो बचपन से ही यह विचार रखता आया हूँ और यह दिवास्वप्न नहीं वरन एक लक्ष्य है वो अप्राप्य नहीं है. ~ पीयूष शुक्ल
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